गैंगस्टर्स के खिलाफ मामलों के लिए विशेष कोर्ट स्थापित हो, गैंगस्टर राज पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

नई दिल्ली l सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र और दिल्ली सरकार से कहा कि वे राष्ट्रीय राजधानी में गैंग्सटरों से जुड़े मामलों के त्वरित निपटारे के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने पर विचार करें। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में एक प्रभावी प्रस्ताव पेश करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि इस समय सीमित संख्या में अदालतें विभिन्न मामलों के बोझ तले दबी हैं और गैंग्सटरों से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतें आइपीसी, एनडीपीएस और पीएमएलए के तहत मामलों की भी सुनवाई कर रही हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा, ”फास्ट ट्रैक अदालतों ने बहुत उत्साहजनक परिणाम दिए हैं। इसी तरह गैंग्सटरों से संबंधित मामलों के लिए भी विशेष अदालतें हो सकती हैं। हम दुर्दांत अपराधियों की बात कर रहे हैं, छिटपुट घटनाओं की नहीं। समाज को उनसे छुटकारा पाना होगा। कानून का राज कायम होना चाहिए और पुलिस को निर्मम होना होगा।”
दिल्ली सरकार के हलफनामे का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि 288 मामलों में से केवल 108 में ही आरोप तय किए गए और उनमें से केवल 25 ही अभियोजन पक्ष के गवाहों से पूछताछ के चरण तक पहुंच पाए।
जस्टिस बागची ने कहा कि सरकारी वकील मुकदमों के बोझ तले दबे होने के कारण विशेष कानून के तहत आने वाले मामलों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे हैं। यह चलन बन गया है कि सभी मामले गिरफ्तारी से शुरू होते हैं और बिना दोषसिद्धि या बरी हुए जमानत पर खत्म हो जाते हैं।
हरियाणा की सीमा से लगे दिल्ली के बाहरी इलाकों में स्थिति बहुत गंभीर है। जिन बुजुर्गों के बच्चे विदेश में रहते हैं, उन्हें चेन स्नैचिंग और अन्य घटनाओं का सामना करना पड़ता है।
सुरक्षा के अभाव में गैंग्सटरों के विरुद्ध गवाही नहीं दे पाते लोगगाजियाबाद में कल एक आरोपित को गिरफ्तार किया गया और पता चला कि उसने छह महीने पहले पानीपत में हत्या की थी। गवाहों की सुरक्षा के मुद्दे पर पीठ ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि सुरक्षा के अभाव में उन्होंने गैंग्सटरों के विरुद्ध गवाही नहीं दी।
पीठ ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट को राष्ट्रीय राजधानी में ऐसे मामलों के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सरकार को उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के लिए अतिरिक्त पदों को मंजूरी देने और आवश्यक बुनियादी ढांचा बनाने की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत दिल्ली में 55 मामलों में शामिल एक कथित दुर्दांत अपराधी महेश खत्री उर्फ भोली की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।