ईद-ए-मिलादुन्नबी : रहमतुल्लिल आलमीन की जीवन गाथा

ईद-ए-मिलादुन्नबी : रहमतुल्लिल आलमीन की जीवन गाथा

नई रोशनी, नई राह – इंसानियत का पैग़ाम

ईद-ए-मिलादुन्नबी का पर्व हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पूरी दुनिया के मुसलमान ख़ुशी का इज़हार करते हुए उन्हें याद करते हैं और उनके बताए हुए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं।

जन्म और बाल्यकाल

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म मक्का की पवित्र धरती पर 12 रबीउल अव्वल को हुआ। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज अज्ञानता, अन्याय, अंधविश्वास और बुराइयों से घिरा हुआ था। बचपन से ही आप ईमानदार, सच्चे और भरोसेमंद माने जाते थे। लोग आपको "अल-अमीन" यानी विश्वसनीय कहा करते थे।

नुबुव्वत और संदेश

40 वर्ष की आयु में आपको अल्लाह की तरफ़ से नुबुव्वत (पैग़म्बरी) दी गई। कुरआन की पहली वह़्यी (प्रकाशना) "इक़रा" के साथ इंसानियत के लिए नई राह खुली। आपने लोगों को तौहीद (एक अल्लाह पर ईमान), इंसाफ़, भाईचारा, अमन और इंसानियत का पैग़ाम दिया।

इंसानियत और करुणा का प्रतीक

रसूल-ए-पाक ने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया। आप मज़लूमों के सहारा, यतीमों के हमदर्द और औरतों के सम्मानकर्ता बने। आपने सिखाया कि अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, जात-पात और रंग-भेद की कोई जगह इस्लाम में नहीं है।

कुरआन और हदीस की शिक्षा

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरआन और हदीस के ज़रिए ऐसी हिदायतें दीं जो आज भी जीवन को बेहतर बनाने का रास्ता दिखाती हैं। सच बोलना, अमानत में खयानत न करना, पड़ोसियों का ख़याल रखना और गरीबों-मिस्कीनों की मदद करना – यही उनका असल पैग़ाम था।

ईद-ए-मिलादुन्नबी का महत्व

यह दिन सिर्फ़ जश्न का नहीं बल्कि आत्ममंथन का भी है। आज की दुनिया में जब नफ़रत और भेदभाव बढ़ रहा है, तो हमें पैग़म्बर-ए-इस्लाम की उन शिक्षाओं को अपनाना चाहिए जो अमन, भाईचारे और मोहब्बत की मिसाल हैं।

ईद-ए-मिलादुन्नबी हमें यह याद दिलाती है कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूरी ज़िन्दगी इंसानियत के लिए रहनुमाई (मार्गदर्शन) है। उनके बताए रास्ते पर चलना ही सच्ची मोहब्बत और ईमानदारी की पहचान है।